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Short Moral Stories in Hindi for Kids

Short Moral Stories in Hindi for Kids – दादी और नानी वाली बच्चों के लिए छोटी कहानियाँ

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Short Stories in Hindi – कैसे हो मेरे प्यार दोस्तों, आज मैं आपके लिए कुछ अच्छी कहानियाँ लेकर आया हूँ। और आज का हमारा आर्टिकल का नाम है Short Moral Stories in Hindi for Kids – दादी और नानी वाली बच्चों के लिए छोटी कहानियाँ

बच्चों कहानियाँ कई तरह की होती है कुछ कहानियाँ बड़ी होती है तो कुछ छोटी। कई कहानी ऐसे होती है जिससे हमको जीवन जीने का जरिया पता चलता है अच्छी सीख मिलती है। कहानियों का जिक्र होते ही हमें ये पता चलता है कि कहानियाँ घर के बड़े बुजुर्ग ही सुनाते है। क्योंकि उनको भी किसी ने सुनाया होता है। अक्सर हमें दादी और नानी कहानियाँ सुनाया करती है।

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जादुई कड़ी चावल | Short Stories in Hindi | Moral Story for Kids

एक बार की बात है एक गाँव में दो भाई रहते थे। एक का नाम राम था दूसरे का नाम श्याम था। राम बहुत धनी था परंतु श्याम ज्यादा पैसे वाला नहीं था। श्याम अपनी जीविका चलाने के लिए शहर में एक ढाबा (होटल – जहां खाना मिलता है) चलाता था पर श्याम का ढाबा ज्यादा चलता नहीं था। श्याम के परिवार में उसकी पत्नी सुधा और बेटी नीलम थी।

श्याम की एक अच्छी आदत थी कि वो भूखे और जरुरतमन्द को मुफ़्त में खाना खिला दिया करता था। श्याम चाहता था की मेरा होटल ज्यादा चलते तो हमें गरीबी से छुटकारा मिलता साथ में मेरी बेटी नीलम अच्छे स्कूल में पड़ती। श्याम दिल का बहुत ईमानदार व्यक्ति था। वो किसी के साथ छल कपट नहीं करता था।

श्याम अपनी बेटी का दाखिला अच्छे विद्यालय में कराना चाहता था जिसके लिए उसे ज्यादा पैसों की जरूरत था। पैसे के जरूरत को पूरा करने के लिए श्याम अपने भाई राम के घर गया। वहाँ उसने अपने भाई से नीलम के अच्छे स्कूल में दाखिला लेने वाली बात बताई और कहाँ भाई मुझे कुछ पैसे दे दो।

मैं धीरे-धीरे तुम्हारा पैसा दे दूंगा। पर राम ने पैसे देने से इनकार करते हुए ये कहा कि देखो मेरे पास पैसे नहीं है मेरा ढाबा बड़ा ही मंदा चल रहा है। श्याम ने कहा कोइ बात नहीं मैं किसी और से मांग लूँगा और वहाँ से चला आया।

श्याम ने अपनी पत्नी से पैसे मांगने की बात बताई। सुधा ने कहा पैसे नहीं है तो नीलम का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दीजिए।

एक दिन शाम के समय में उसके ढाबे के पास से दो साधु महात्मा गुजर रहे थे। वो बहुत दूर से पैदल ही चले रहे थे। श्याम के ढाबे के पास खड़े होकर एक साधु महात्मा ने दूसरे साधु महात्मा से पूछा – “आपको भूख लगी है?” इस पर दूसरे साधु महात्मा ने कहा – “हाँ भूख तो लगा है परंतु हमारे पास धन नहीं है कि हम किसी को देकर उससे खाना खरीद सके।”

इन सब बात को श्याम बड़े ध्यान से सुन रहा था। श्याम ने कहा – हे साधु महात्मा आप जो कोइ भी हो आप के पास पैसे नहीं है तो क्या हुआ मैं आपको खाना खिला सकता हूँ”

साधु महात्मा ने कहा – बालक मेरे पास धन नहीं है कि तुम्हारे खाने के पैसे दे सकू। श्याम ने कहा साधु महात्मा मैं आपसे पैसे मांग नहीं रहा हूँ मैं ज्यादा पैसे वाला नहीं हूँ एक गरीब आदमी हूँ शाम का समय है मेरे ढाबे पर बस कड़ी चावल बचे है आप इन्हें ग्रहण कर लीजिए।

फिर दोनों साधु ने श्याम के कड़ी चावल को बड़े चाव से खाया और अपने भूख को शांत किया।

साधु महात्मा को श्याम के इस व्यवहार से भट ही प्रसन्नता हुई उन्होंने श्याम को आशीर्वाद के रूप में ये कहा की श्याम तुम्हारे व्यवहार से हम दोनों बहुत प्रसन्न है मैं तुम्हें एक मंत्र देता हूँ। इस मंत्र को तुम तब जाप करना जब कड़ी चवाल बनाना। इससे तुम्हारे कड़ी चावल बहुत ही स्वादिष्ट बनेगें। साथ ही रोजाना 100 गरीब और भूखे लोगों को खिलाना मत भूलना।

अब क्या था जब भी श्याम कड़ी-चावल बनाता मंत्र को जाप कर देता। और रोजाना 100 भूखे और गरीब लोगों को खाना मुफ़्त में खिलाता था। श्याम के स्वादिष्ट कड़ी-चावल शहर भर में मशहूर हो गए। अब रोजाना श्याम के ढाबे पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी।

श्याम अपने ढाबे को चलता देख अपनी पत्नी सुधा से कहा लगता है हमें अपने ढाबे को किसी नए और बड़े जगह पर ले जाना पड़ेगा क्योंकि ग्राहकों की भीड़ बहुत बढ़ गई है। सुधा ने कहा हाँ जी ढाबे को किसी बड़े मकान में कर लीजिए।

श्याम ने अपने ढाबे के लिए एक बड़ा सा मकान किराये पर लिया और ढाबे को खोल कर चलाने लगा। अब ग्राहकों कि भीड़ और बढ़ने लगी। इससे देखते देखते श्याम बहुत अमीर हो गया।

इस बात की भनक उसके भाई राम को लगी वो बिना देरी किए श्याम के तरक्की का राज मालूम करने श्याम के पास पहुँच गया। और बोला भाई तुम इतने अमीर कैसे हो गए। तुम तो अभी बहुत गरीब थे अपने बेटी को अच्छे स्कूल में दाखिला करवाने के लिए तुम्हारे पास पैसे नहीं थे। क्या राज है? हमें भी बताओ तुम्हारे ढाबे पर इतनी ग्राहकों की भीड़ कैसे लगने लगी? मेरे धंधा तो बिल्कुल गिर गया है।

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इस पर श्याम मुसकुराते हुए कहता है कि भाई एक रोज की बात है मैंने दो साधु महात्मा को मुफ़्त में भोजन कराया था जिससे उन्होंने प्रसन्न होकर मुझे एक मंत्र दिया है और कहा है कि जब भी तुम कड़ी चावल बनाना इस मंत्र का जाप कर लेना। इसके बाद से मेरे कड़ी-चावल का स्वाद इतना बढ़ जाता है कि दूर-दूर से लोग खाने के लिए आते है।

राम ने कहा भाई मुझे भी इस मंत्र को बताओं श्याम ने बिना देरी किये राम को मंत्र जाप करने के बारे में बता दिया और कहा रोजाना 100 गरीब और भूखे लोगों को मुफ़्त में भोजन कराना।

राम मंत्र लेकर अपने ढाबे पर पहुंचा और सोचने लगा। उसने सोचा की क्यों न मैं मंत्र पढ़कर स्वादिष्ट कड़ी-चावल बनाकर अपने भाई श्याम से सस्ते रेट में बेचू इससे ज्यादा ग्राहक आएंगे और मैं इससे भी जल्दी अमीर बन जाऊंगा।

अगले दिन सुबह राम ने मंत्र पढ़कर कड़ी-चावल बनाया और पूरे शहर में सबसे सस्ते स्वादिष्ट कड़ी चावल प्रचार करवा दिया। उसके ढाबे पर ग्राहक तो आए परंतु सभी ने ये कहके दुबारा आने से मना कर दिया की तुम्हारे कड़ी चावल सस्ते है परंतु इसमें स्वाद नहीं है।

ये बात सुनके राम बहुत परेशान हो गया। वो भागा-भागा अपने भाई श्याम के पास पहुंचा और सारी बात बताई फिर श्याम ने पूछा क्या तुमने 100 गरीब और भूखे लोगों को मुफ़्त में भोजन कराया? राम ने कहा नहीं।

श्याम ने कहा इसीलिए तुम्हारे ढाबे का कड़ी चावल स्वादिष्ट नहीं बना था। आओ हम दोनों साथ मिलकर मेरा ढाबा चलाते है। इस पर राम खुश हो गया और दोनों भाई साथ मिलकर ढाबा चलाने लगे कुछ महीनों बाद दोनों बहुत अमीर हो गए।

Moral of Story - कहानी से हमें यही सिख मिलती है की हमें दयालु और ईमानदार होना चाहिए। भूखे और गरीबों की मदद करनी चाहिए। किसी के साथ छलकपट से उसका नुकसान नहीं करना चाहिए।

चींटी और कबूतर की कहानी | पंचतंत्र की कहानी | Moral Short Story in Hindi

एक बार की बात है एक चींटी नदी के किनारे से सटे हुए पेड़ पर चड़ रही थी तभी तेज हवा के कारण उसके पैर पिसल गई और वो नदी में जाकर गिर गई। चींटी डूबने लगी नदी के बहाव तेज था जिसको वो पार नहीं कर पा रही थी।

इतने पर ही एक कबूतर पानी पीने नदी के पास उड़ते हुए आया वो पानी पी ही रहा था की उसने चींटी को डूबते हुए देखा।

वो झट से पेड़ के पास गया और एक सूखे पत्ते को अपने चोंच में दबा कर चींटी के पास गिरा दिया। चींटी पत्ते का सहारा लेकर नदी के पानी से बाहर आ गई। जिसके बाद उसने कबूतर का शुक्रियादा किया।

कुछ दिनों बाद एक जगल में एक बहेलिया आया। बहेलिया ने अपना जाल बिछा दिया और वहाँ चिड़ियो को पकड़ने के लिए दाना डाल दिया।

कबूतर जाल को नहीं देख रहा था वो उड़ते हुए जाल की तरफ जा रहा था। चींटी ने देखा कबूतर जाल में तो फस जाएगा। कबूतर की जान बचाने के लिए चींटी ने बहेलियें के पैर में जोर से काटा और भाग गई।

बहेलिया जोर जोर से चिलाने लगा। बहेलिये की आवाज सुनकर कबूतर आवाज को सुनकर उसके तरफ गया और समझ गया की ये बहेलिया है इसने जाल बिछाया हुआ है। कबूतर दाना छोड़ कर दूसरे तरफ उड़ते हुए भाग गया। इस तरह से कबूतर की जान बच गई।

एक बार कबूतर ने चींटी को डूबते हुए देखकर उसकी जान बचाई ठीक उसी तरह चींटी ने कबूतर को जाल में फसने से पहले कबूतर की जान बचाई।

Moral of Story:- इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है कि कर भला तो हो भला। मतलब आप किसी का भला करेंगे तो आपका भी भला ही होगा। 

किसान और उसकी दो बहादुर जुड़वा बेटियाँ | Moral Short Stories in Hindi | Hindi Kahaniyan

एक रामगढ़ नाम बहुत ही सुन्दर गाँव था। उस गाँव में जाने के लिए एक पतली नदी पार करना पड़ता था तब उस गाँव में पहुँच सकते थे। नदी पार करने के लिए दो नाव आते जाते रहते थे। उस गाँव में एक हरिया नाम का किसान अपनी पत्नी मीरा के साथ रहता था। गाँव में ऐसे सोच थी कि लड़का पैदा करना लड़की पैदा करने से ज्यादा अच्छा होता है।

हरिया की पत्नी मीरा को शादी के बाद काफी समय से बच्चा नहीं हो रहा था। उन्होंने इसके लिए काफी मंदिर के दर्शन किए थे और पूजा-पाठ किया था। शायद भगवान ने उनकी सुन ली और मीरा गर्भवती हो गई। हरिया दिन भर खेत में मेहनत करता और मीरा उसके लिए रोजाना की तरह खाना पहुंचाया करती थी।

हरिया ने कहा अब तुमको आराम करना चाहिए मुझे इतनी धूप में खेत में खाना पहुँचने की जरूरत नहीं है। परंतु मीरा ने कहा आप कुछ मत बोलो जी आप सुबह ही खेत के लिए चले आते हो और भूखे प्यासे खेत में मेहनत करते हो खाना खा लो। मेरा क्या मुझे तो दिनभर चलने की आदत है मैं धीरे – धीरे चलते हुए आपके लिए खाना लाई हूँ।

हरिया मीरा की बात सुनकर चुप हो गया। और खाना खाने लगा। कुछ दिनों बाद मीरा और हरिया को दो जुड़वां बच्चियाँ हुई। दोनों ही बहुत सुंदर थी। बच्चियाँ जैसे हुई मीरा का देहांत हो गया। हरिया इससे बहुत दुखी हुआ। मीरा के मौत के कई दिनों बाद गाँव के कुछ लोग और सरपंच, हरिया को सहानुभूति देने के लिए हरिया के घर पहुंचे। सरपंच ने हरिया से कहा मुझे बहुत दुख है मीरा के देहांत को लेकर अभी उम्र ही क्या थी उसकी। तुम्हारी भी उम्र कम है कैसे तुम दो इन बच्चियों का पालन-पोषण करोगे।

क्यों न तुम दूसरी शादी कर लेते हो? हरिया ने कहा नहीं सरपंच जी अब मीरा के बाद ये दो बच्चियाँ ही मेरा परिवार है। मैं दूसरी शादी नहीं कर सकता हूँ। हरिया की बात सुनकर सरपंच और गाँव के सभी लोग वहाँ से चले गए।

हरिया बच्चियों को माँ के जैसे प्यार और दुलार करता था। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। अब वो दोनों बच्चियाँ 6 साल की हो गई थी। हरिया ने एक बेटी का नाम नैना और दूसरी बेटी का नाम सुनैना रखा था। दोनों बहुत ही बहादुर और होशियार थी।

बेटीयों के थोड़े बड़ी होने के से हरिया के कंधे से थोड़ा बोझ हल्का हो गया था। हरिया ने अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाना चाहता था। स्कूल नदी पार दूसरे गाँव में था। हरिया सरपंच के पास गया और अपनी दोनों बेटियों का जन्म प्रमाण पत्र मांगने लगा। सरपंच ने कहा हरिया वो तो मैं दे दूंगा परंतु तुम जन्म दाखिलों का करोगे क्या?

हरिया ने कहा सरपंच जी मैं अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाना चाहता हूँ। सरपंच ने कहा तुम्हें पता नहीं है कि इस गाँव में कभी भी बेटियाँ पढ़ने गई नहीं है। उनका असली कार्य घर के कार्यों में होता है। भला वो पढ़-लिखकर करेंगी क्या?

हरिया ने कहा सरपंच जी आप कुछ भी सोचे गाँव में कोइ भी रीति-रिवाज हो मैं अपनी बेटियों को पढ़ाऊँगा। सरपंच ने नैना और सुनैना दोनों के जन्म दाखिलों को दे दिया।

हरिया अपने दोनों बेटियों का दाखिला पास के स्कूल में करा आया। अब नैना और सुनैना दोनों स्कूल जाने लगी। जब वो दोनों 10 साल की हो गई तब उन्होंने अपने पिता हरिया से कहा। पिता जी अब हम दोनों बड़ी हो गई है आप ने हमें तैरना सिखाने के लिए कहा था। हरिया ने कहा हाँ मुखे याद है। मैं तुम दोनों को कल नदी में ले जाकर तैरना सिखाऊँगा। दोनों ने कहा ठीक है।

अगले दिन सुबह नैना और सुनैना अपने पिता के साथ नदी किनारे तैराकी सीखने के लिए चली गई। हरिया ने उन्हे बारी-बारी से तैरना सिखाया। दोनों बहने रोजाना तैरने का अभ्यास करने लगी। कुछ ही महीने बाद दोनों अच्छी तैराक हो गई।

नैना और सुनैना स्कूल के बाद जब नाव में बैठकर नदी पार करके अपने घर आ रही थी। तभी दूसरी तरफ से सरपंच भी नदी में बैठकर नदी पार कर रहे थे। अचानक सरपंच का संतुलन बिगड़ा और सरपंच जी नदी में गिर गए। नैना और सुनैना ने सरपंच को डूबते हुए देखा तो दोनों ने बिना कुछ देखे नदी में तपाक से छलांग लगा दिया। दोनों ने मिलकर जल्दी से सरपंच को नदी किनारे लेकर आई। तभी वहाँ गाँव के लोगों ने सरपंच के पेट से पानी निकाला और सरपंच की जान बचाई।

सरपंच होश में आकर नैना और सुनैना के पिता को धन्यवाद कहा और पढ़ाने के बात को लेकर और खुश हुए। गाँव में ऐलान करवा दिया की कल से गाँव की सभी बच्चियाँ स्कूल जाएंगी। नैना और सुनैना दोनों बहुत खुश हुई। साथ ही हरिया भी अपनी बेटियों के बहादुरी से बहुत खुश हुआ।

Moral of Story:- इस कहानी से हमें यही सिख मिलती है कि बेटे और बेटियों में कोइ भेद-भाव नहीं करे। दोनों समान है। जितना हक बेटे का उतना ही हक बेटियों का है। बेटियों को भी पढ़ने के लिए भेजिए। बेटी को जिस भी कार्य में मन लगता है उसमें उसकी सहायता कीजिए और उनको आगे बढ़ाइए।

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